Friday 12 April, 2013

इश्क़ मुझको नहीं


इश्क़ मुझको नहीं, वहशत1 ही सही 
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही 

क़त्अ2 कीजे, न तअल्लुक़3 हम से
कुछ नहीं है, तो अदावत4 ही सही

मेरे होने में है क्या रुसवाई5 
ऐ वो मजलिस नहीं, ख़ल्वत6 ही सही 

हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने
ग़ैर को तुझसे मुहब्बत ही सही 

हम कोई तर्के-वफ़ा करते हैं 
ना सही इश्क़, मुसीबत ही सही 

हम भी तस्लीम की ख़ू7 डालेंगे 
बेनियाज़ी8 तेरी आदत ही सही 

यार से छेड़ चली जाए 'असद'
गर नहीं वस्ल तो हसरत ही सही !

मिर्ज़ा ग़ालिब

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